नरम नरम सी धुप थी, वो मार्च का था महीना ठंडी अभी भी थोड़ी सी थी, और थोड़ा आता था पसीना ग्लोबल वार्मिंग कहें या…
याद है मुझे वो दिन, जब मैं एक मच्छर से भिड़ा था दर्जनों थे वो और मैं अकेला लड़ा था रात भर जगाया था मुझको…
गूंज रहे हैं अब तक जिसके, मेरे कानो में स्वर भूल सका नही जिसको मैं, था वो एक उड़ता हुआ मच्छर बैठा था कोने में…