नरम नरम सी धुप थी, वो मार्च का था महीना
ठंडी अभी भी थोड़ी सी थी, और थोड़ा आता था पसीना
ग्लोबल वार्मिंग कहें या कुछ और, सुना था इस साल गर्मी बहुत बड़ जाएगी
पर किसे पता था, गर्मी के कारण एक भारी विपदा मुझ गरीब पर आएगी
जैसे जैसे महीने गुज़रे, गर्मी का केहर भी बड़ा
और मई जून तक आते आते पारा जाने कितने डिग्री चढ़ा
घर के अंदर पंखों ने पारे को थोड़ा घटाया
पर बहार इतनी गर्मी थी, कुछ नया पनपता पाया
याद दिलाऊं युद्ध तुम्हें, जो मैं कई बरसों पहले लड़ा था
कोई जाग रहा था अब तक, बस एक अवसर के इंतज़ार में खड़ा था
मैं मार सका न जिसको था, वह कई पेडियों पहले प्राकृतिक मौत मरा था
पर इधर दिखा एक मच्छर आज, वो अवतार उसी का खड़ा था
चेहरा था बिलकुल वैसा ही, पर थोड़ा अलग था उसका भेष
पहले वाला हट्टा कट्टा देसी, और यह सुडौल अंग्रेज़
एक बात बताऊँ और तुम्हें, इस बार ना लाये वो सेना,
थे दो-चार बलवान बलशाली, अब इनसे पंगा क्या लेना
जीन्स में दीखता बाहुबल, और आँखों में आत्मविश्वास
बस अब तो लगता कठिन है बचना, फ़िर भी करूंगा एक प्रयास
अंतिम युद्ध समझ मैंने भी, पूरा ज़ोर लगाया
दो-चार वो थे, सब शस्त्र भी थे, पर कोई हाथ लगा ना पाया
इतने युग चला जब युद्ध, खुद प्रकट हुए भगवान्
बोले अब बस छोड़दो इसको, यह बच्चा था नादान
गलती की इस बालक ने, कई बीते युग और साल
कब तक मन में रखोगे, ये सब है एक जंजाल
आओ अब सब हाथ बढ़ाओ, हो अब यह युद्ध समाप्त
पर जैसे ही हाथ बढ़ाया मैंने, मुझे लिया तुरंत ही काट
खुश हो कर वो बोले, भगवन, अब और ना कोई मुराद
अपना तो युद्ध ख़तम ही समझो, अब शंख बजाओ आप
प्रभु की लीला प्रभु ही जानें, मैं तो एक इंसान
झगड़ा अब करूँ समाप्त जो मैं, यही मेरी पहचान