Menu Close

आहिस्ता-आहिस्ता

कहीं कभी चलते हुए
मैं मिला एक शख्स से,
बहुत खुश और बहुत ही प्यारी
पर तनहा थी ज़िन्दगी गुज़ारी

मुझसे मिल खिला फूलों सा वो
सूरज के जैसा रौशन था जो
ऐसा लगता था मैं उसे जानता था
कई वर्षों पहले से पहचानता था

पुछा जो मैंने नाम, कुछ कह नहीं रहा था
बस मुझे प्यार भरी नज़रों से देख रहा था
मानो आँखों ही आखों कुछ कह रहा था
हर लम्हा शीतल पानी सा वो बह रहा था

फिर अचानक एक तेज़ सी रौशनी आई
आँखों में अँधेरा, दिल में मदहोशी छाई
पर कुछ ही पलों में सब फिर से ठीक था
वो आइना था, मेरी ज़िन्दगी का प्रतीक था

मुझे पाना चाहता था, याद दिलाना चाहता था
मेरी ज़िन्दगी को सही राह दिखाना चाहता था
उसे किस्मत नहीं, मेहनत से सजाना चाहता था
उस तेज़ रौशनी से ऊपर ले जाना चाहता था

जहाँ अँधेरा नहीं होता, सब स्पष्ट दीखता है
जहाँ हर सपना सच होने की क्षमता रखता है
और जहाँ तेज़ रफ़्तार होते हुए भी,
ज़िन्दगी चलती है आहिस्ता – आहिस्ता

Related Posts

Leave a Reply

Social media & sharing icons powered by UltimatelySocial